लोकसभा चुनाव के नतीजे सबके सामने हैं, हार जीत के बहुत से पहलू हैं जिसकी चर्चा कई जगह हो चुकी हैं पर उत्तर प्रदेश के समस्त यादव पिछडे बेल्ट में समाजवादियों को सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ जिसके तमाम कारणों में एक कारण “आकाश” भी है! जी वही “आकाश आनंद” जो बसपा सुप्रीमो के भतीजे हैं! शायद लोगों को ना लगे, लेकिन जिस तरह से सपा परिवार के लाड़ले पार्टी की टूट के बाद यूपी विधान सभा चुनाव में पहले कोंग्रेस और उसके बाद लोकसभा चुनावों में बसपा सुप्रीमो के क़दमों में बिछ गए थे वो लोगों को न गुजरवार हुआ! विकासवादी नेता के रूप पे छवि बना कर चलने वाले नेता का 2017 में परिवार से टूट और फिर 2014 में भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दों पे देश में बुरी तरह से हारी और यूपी में प्रायः विलुप्त होती कोंग्रेस को एक तिहाई सीट देना लोगों, समर्थकों और पोलिटिकल पंडितों की समझ से बाहर था और यही ग़लती उन्होंने पिछले लोग सभा में शून्य हुयी बसपा को इस लोकसभा में आधी सीट देके दुबारा कर लिया! एक तो बसपा और सपा के “आसमानी” गठबंधन का ज़मीनी स्तर पे कोई मिलाप नहीं था उसपे पिता से विरोध फिर पिता की धुर विरोधी से समर्थन ,बहु से पैर छुवाना फिर सुप्रीमो के भतीजे का यादव बहुल क्षेत्र में हुए रैली में लाखों की भीड़ में सरे मंच सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव जैसे वरिष्ट का पैर ना छूना जैसी घटनाओं ने एक बाद एक कर कुनबे के हर नौजवान से लेके बुज़ुर्ग हर श्रेणी के यादवों की भावनाओं को आहत किया और अखिलेश यादव को अपने पिता के मुक़ाबले दुबारा एक कमज़ोर के साथ एक नासमझ नेता साबित कर गया!
पहली बार यह डैमेज 2017 के विधानसभा चुनावों में “यूपी को ये साथ पसंद है” के प्रिंस राहुल गाँधी उन्हें भरी प्रेस कोनफ़्रेंस में “अच्छा लड़का है” कह के कर चुके थे! और ऐसा ही बसपा सुप्रीमो मायावती साझा रैलियों में अखिलेश यादव के सम्मुख सपा समर्थोकों को भरे मंच से अनुशासनहीन, उत्पाती, हुड्दंगी जैसे शब्दों से नवाज़ कर कई बार डैमेज ही नहीं किया बल्कि यहाँ तक कहा की समाजवादी समर्थकों को बसपा समर्थकों से शिष्टाचार सिखना चाहिए! जिसको लेके भी समाजवादी समर्थकों में काफ़ी रोष रहा। जिसपे अखिलेश की चुप्पी को मजबूरी मानकर उन्हें उनके समर्थकों के सामने कमज़ोर साबित करता गया!
कई सपा समर्थकों का मानना है की अखिलेश यादव राजनीति के वो हनुमान है जो अपनी शक्तियों को भूल चुके हैं! जिसके चलते वो अपनी राजनीतिक ज़मीन पे दूसरों से हल चलवा रहे हैं जो इन्हें बाहर से लेके पार्टी के भीतर तक नुक़सान कर रहा है!