यूपी के नए सीएम योगी आदित्यनाथ की छवि हमेशा से हिंदू हृदय सम्राट के रूप में रही है,लेकिन पिछले कुछ सालों में उनके स्वभाव में आए अभूतपूर्व बदलाव ने उन्हें सीएम की रेस में सबसे आगे कर दिया!
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारीयों का विगुल बजने के क़रीब 4 साल पहले हीं लगभग ठीक लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान ही, पूर्वांचल से योगी आदित्यनाथ के समर्थकों ने ‘देश में मोदी, प्रदेश में योगी’ नारे की उद्घोषणा पूरे ज़ोर शोर से कर दी थी और 2017 विधानसभा चुनावों में एक फ़िर पूर्वांचल से “..अबकी बार योगी सरकार” के नारे का शंखनाद हुआ!
साल भर की चुनावी तैयारी के बीच योगी आदित्यनाथ का नाम कई बार ऊपर-नीचे होता रहा, एक बार तो लगा था कि सीएम की रेस में योगी काफी पीछे छूट गए लेकिन योगी जी के युवा ब्रिगेड ने कभी हार नहीं मानी। योगी आदित्यनाथ जी की पहचान बीजेपी के फायरब्रांड नेता के रूप में हमेशा से रही है। 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा रैलियां करने वाले योगी पूर्वांचल के बड़े नेता माने जाते हैं, और माने भी क्यों ना जायें, पूर्वांचल की कम से कम 60 सीटों पर उनकी जबरदस्त पकड़ है, इसीलिए बीजेपी उनकी अनदेखी करने का जोखिम नहीं उठा सकती थी। वो बात अलग है की प्रदेश के कई भाजपा नेताओं को उनका अचानक से सीएम पद की रेस में सबसे आगे बढ़ जाना गले से नीचे नहीं उतर रहा था।
योगी आदित्यनाथ का असली नाम अजय सिंह बिष्ट है। योगी जी का जन्म 5 जून 1972 को उत्तराखंड के पौड़ी जिला स्थित यमकेश्वर तहसील के पंचूर गांव में हुआ। टिहरी के गजा के स्थानीय स्कूल में पढ़ाई शुरू की और गढ़वाल विश्विद्यालय से गणित में बीएससी किया। 22 साल की उम्र में ही उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग दिया और संन्यासी बन गए और उन्हें आदित्यनाथ नाम दिया गया। वो गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए। महंत अवैद्यनाथ ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जिसके बाद वे राजनीति में आए। योगी आदित्यनाथ के नाम सबसे कम उम्र (26 साल) में सांसद बनने का रिकॉर्ड है। उन्होंने पहली बार 1998 में लोकसभा का चुनाव जीता था। इसके बाद आदित्यनाथ 1999, 2004, 2009 और 2014 में भी लगातार लोकसभा का चुनाव जीतते रहे।
राजनीति के मैदान में आते ही योगी आदित्यनाथ ने सियासत की दूसरी डगर भी पकड़ ली, उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया और धर्म परिवर्तन के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। उन्होंने कई बार विवादित बयान भी दिए, लेकिन दूसरी तरफ उनका राजनीतिक कद बढ़ता चला गया। योगी धर्मांतरण के खिलाफ और घर वापसी के लिए काफी चर्चा में रहे। 2005 में योगी आदित्यनाथ ने कथित तौर पर 1800 ईसाइयों का शुद्धीकरण कर हिन्दू धर्म में शामिल कराया। ईसाइयों के इस शुद्धीकरण का काम उत्तर प्रदेश के एटा जिले में किया गया। 2007 में गोरखपुर में दंगे हुए तो योगी आदित्यनाथ को मुख्य आरोपी बनाया गया, गिरफ्तारी हुई और इस पर कोहराम भी मचा। योगी के खिलाफ कई अपराधिक मुकदमे भी दर्ज हो चुके हैं।
उन्होंने किसानों से लेकर आम जनमानस के कई मुद्दे संसद में उठाए और काम किया। योगी आदित्यनाथ ने वर्तमान लोकसभा की चर्चा में 56 बार हिस्सा लिया जब दूसरे सांसदों का औसत मात्र 45 है। पिछली लोकसभा में योगी ने राष्ट्रीय हित के विषयों पर 347 बार से ज्यादा सवाल उठाए, जो किसी अन्य सांसद के मुकाबले ज्यादा है। योगी आदित्यनाथ बतौर सांसद 3 प्राइवेट बिल पेश किए जबकि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर ये औसत मात्र 1 है।
साल 2014 में अपने गुरु और गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ के प्राण त्याग के बाद वो गोरखनाथ मंदिर के महंत यानी पीठाधीश्वर चुन लिए गए। महंत बन जाने के बाद योगी के स्वभाव में और गंभीरता आई। गोरखनाथ मंदिर के आसपास रहने वाले योगी की बहुत इज्जत करते हैं चाहे वे किसी भी जाति या समुदाय के हों। मंदिर के आसपास रहने वाले मुसलमानों की भी योगी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। आपको शायद हैरानी हो पर कई बड़े मुस्लिम योगी आदित्यनाथ के बेहद करीबी हैं। वो जाति और धर्म की राजनीति से उपर उठकर काम करते हैं। वो हिंदू युवा वाहिनी के संस्थापक भी हैं, जो हिन्दू युवाओं का सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी समूह है। योगी खुल कर कहते हैं कि उन्होंने कभी भी मुसलमानों का विरोध नहीं किया और वो सबका साथ, सबका विकास की धारणा में ही यकीन रखते हैं। अब जब बीजेपी ने उन्हें सीएम के लिए चुन लिया है तो उनसे यही उम्मीद है कि वो सबका साथ-सबका विकास के साथ ही आगे बढ़ेंगे।