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किसान बिल या मोदी? क्या है विरोध की असली वजह!

अब तक लगभग अपराजेय रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए दिल्ली बॉर्डर पर चल रहा यह आंदोलन क्या वाटरलू का युद्ध साबित होगा?

2 years ago
inInsideStory
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किसान बिल या मोदी? क्या है विरोध की असली वजह!

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Inside Desk: तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा किसान आंदोलन अब केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन गया है। सरकार न इस मुद्दे पर पीछे हट पा रही है, न आगे बढ़ पा रही है। अपने हठधर्मी रवैये पर कायम रहते हुए भी सरकार ने बहुतेरे प्रयास किए लेकिन वह किसानों के विश्वास को जीतने में नाकाम रही है। ताजा स्थिति यह है कि दिल्ली बार्डर पर कई स्थानों पर पुलिस ने बोल्डर बिछाने के साथ-साथ रोडरोलर खड़े कर दिए हैं। सड़कों पर कीलें और कंटीले तार बिछा दिए हैं। यह अभूतपूर्व किलेबंदी किसानों को दिल्ली से पहुंचने से रोकने के लिए है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि सरकार नहीं चाहती कि दिल्ली में 26 जनवरी वाली घटना की पुनरावृत्ति हो।

जिन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है। वे ये हैं-

1-किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम-इस कानून के जरिये किसान मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को बेच पाएंगे।

2-किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं अनुबंध कृषि सेवाएं अधिनियम-इसमें किसानों की जमीन को कोई भी पूंजीपति या ठेकेदार कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए ले सकेगा।

3-आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम-इस कानून में अनाज, दालों, आलू, प्याज और दूसरे खाद्य पदार्थों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। इससे इसके भंडारण पर लगी रोक हटा ली गई है।

इन तीनों कानूनों के विरोध में किसान दिल्ली बार्डर पर लंबे समय से आंदोलनरत हैं। 25 से अधिक किसानों ने अपनी जानें भी गंवाई हैं। वे 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली में हिंसा हो जाने पर बैकफुट पर आ गए थे लेकिन अब फिर से आंदोलनरत हैं। अब उनमें नई ऊर्जा आ गई है। वे आगामी छह फरवरी को देश में चक्काजाम करने के अपने इरादे पर अड़े हैं।

सरकार ने शुरू से ही इस मामले को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ रखा है। उसे इस बात की उम्मीद कतई नहीं थी कि किसानों का विरोध इतना बढ़ जाएगा। लेकिन अब वह अपने कदम इतने आगे बढ़ा चुकी है कि उन्हें पीछे नहीं खींच सकती। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सरकार का विरोध कर रहे किसानों के विरोध में सरकार इतना आगे जा चुकी है कि अब अपने कदम वापस नहीं खींच सकती। केंद्र सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह कृषि कानूनों में कई संशोधन करने को तैयार है लेकिन किसान हैं कि इन कानूनों की वापसी से कम पर पीछे हटने को तैयार ही नहीं हैं।

केंद्र सरकार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से भी उम्मीदें थीं लेकिन उसमें भी लोचा फंस गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इन तीनों कानूनों के क्रियान्वयन को निलंबित रखते हुए इनकी समीक्षा के लिए कमेटी बनाई है। उस कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद सुप्रीम कोर्ट इस पर अपना फैसला सुनाएगी। लेकिन किसानों का आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कमेटी बनाई है, उसके कई सदस्यों की सरकार-भक्ति पहले से जगजाहिर है। ऐसे में इन लोगों से निष्पक्षता की उम्मीद करना बेमानी है।

अब इस आंदोलन को लेकर पूरे देश से जो खबरें आ रही हैं, वे सरकार के लिए शुभ नहीं हैं। इन नकारात्मक खबरों को मीडिया दिखा नहीं रहा है। सरकार के पास इंटेलीजेंस एजेंसियों का जो फीडबैक पहुंच रहा है, वह उसी तरह का पहुंच रहा है, जैसा सरकार चाहती है। सरकार का खुफिया तंत्र सरकार को यही बता रहा है कि इस आंदोलन में केवल पंजाब और हरियाणा के ही किसान शामिल हैं। जबकि यह किसान आंदोलन जल्द ही न केवल समूचे देश का बन जाएगा, बल्कि इसे आम लोगों का भी समर्थन हासिल होगा। अगर सरकार आंदोलन का दमन करना चाहेगी तो यह बात न केवल उसके खिलाफ जाएगी, बल्कि आंदोलनकारियों का इरादा पहले से और अधिक मजबूत होगा।

आज की तारीख में अधिकांश विपक्षी दल भी किसानों के साथ हैं। इन दलों को तो बैठे-बिठाए सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा मिल गया है। जो काम उन्हें करना था, उसको देश के किसान कर रहे हैं। इसलिए विपक्षी दल इस आंदोलन को जनांदोलन बनाने में पूरी ताकत से लगे हैं। इसमें कई दल और संगठन तो इस आंदोलन का समर्थन केवल इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में है। वे मोदी का विरोध करने के लिए विरोध कर रहे हैं। ऐसे में अब तक लगभग अपराजेय रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए दिल्ली बॉर्डर पर चल रहा यह आंदोलन वाटरलू साबित हो सकता है। क्योंकि जो राजनीतिक योद्धा कोई युद्ध नहीं हारा, वह आगे भी नहीं हारेगा, यह जरूरी नहीं। वाटरलू के युद्ध से पहले नेपोलियन को भी अपने अपराजेय होने का भ्रम था।

ऐसे में केंद्र सरकार के हित में यही है कि वह इन तीनों कानूनों को तुरंत वापस ले ले। इससे उसकी थोड़ी किरकिरी तो होगी लेकिन इस आंदोलन के चलते देश को जो नुकसान हो रहा है, वह रुक जाएगा। अगर सरकार इन कानूनों को वापस लेगी, तो इससे यही संदेश जाएगा कि उसने भले ही देर से सही, लेकिन अपने बड़े दिल का परिचय दिया है। इससे सरकार की और ज्यादा फजीहत होने से बचेगी। साथ ही साथ देश भी एक बड़े गतिरोध से मुक्ति पा जाएगा।

क्या है आप की राय!

तीनों बिल वास्तव में किसान विरोधी हैं!

बिल ठीक है पर सरकार किसानों को बिल ठीक से समझा नहीं पायी!

किसान आंदोलन की आड़ में विपक्ष मोदी को निशाना बना रहा है!

Source:
Via: अखिलेश मयंक (स्वतंत्र वरिष्ठ पत्रकार)
Tags: BJPfarmers protestModiRakesh Tikaitकिसान आंदोलन
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